Home > Product > 11. ACS BOOKS PUBLISH > ACS Swasthya Ki Chaabi - Joshi & Choudhary Book - Hindi
स्वास्थ्य
Jump to navigationJump to searchW ने सन् १९४८ में स्वास्थ्य या आरोग्य की निम्नलिखित परिभाषा दी:
दैहिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना (समस्या-विहीन होना)
स्वास्थ्य सिर्फ बीमारियों की अनुपस्थिति का नाम नहीं है। हमें सर्वांगीण स्वास्थ्य के बारे में जानकारी होना बोहोत आवश्यक है। स्वास्थ्य का अर्थ विभिन्न लोगों के लिए अलग-अलग होता है। लेकिन अगर हम एक सार्वभौमिक दृष्टिकोण की बात करें तो अपने आपको स्वस्थ कहने का यह अर्थ होता है कि हम अपने जीवन में आनेवाली सभी सामाजिक, शारीरिक और भावनात्मक चुनौतियों का प्रबंधन करने में सफलतापूर्वक सक्षम हों। वैसे तो आज के समय मे अपने आपको स्वस्थ रखने के ढेर सारी आधुनिक तकनीक मौजूद हो चुकी हैं, लेकिन ये सारी उतनी अधिक कारगर नहीं हैं।
समग्र स्वास्थ्य की परिभाषा
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, स्वास्थ्य सिर्फ रोग या दुर्बलता की अनुपस्थिति ही नहीं बल्कि एक पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक खुशहाली की स्थिति है। स्वस्थ लोग रोजमर्रा की गतिविधियों से निपटने के लिए और किसी भी परिवेश के मुताबिक अपना अनुकूलन करने में सक्षम होते हैं। रोग की अनुपस्थिति एक वांछनीय स्थिति है लेकिन यह स्वास्थ्य को पूर्णतया परिभाषित नहीं करता है। यह स्वास्थ्य के लिए एक कसौटी नहीं है और इसे अकेले स्वास्थ्य निर्माण के लिए पर्याप्त भी नहीं माना जा सकता है। लेकिन स्वस्थ होने का वास्तविक अर्थ अपने आप पर ध्यान केंद्रित करते हुए जीवन जीने के स्वस्थ तरीकों को अपनाया जाना है।
यदि हम एक अभिन्न व्यक्तित्व की इच्छा रखते हैं तो हमें हर हमेशा खुश रहना चाहिए और मन में इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि स्वास्थ्य के आयाम अलग अलग टुकड़ों की तरह है। अतः अगर हम अपने जीवन को कोई अर्थ प्रदान करना चाहते है तो हमें स्वास्थ्य के इन विभिन्न आयामों को एक साथ फिट करना पड़ेगा। वास्तव में, अच्छे स्वास्थ्य की कल्पना समग्र स्वास्थ्य का नाम है जिसमें शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य , बौद्धिक स्वास्थ्य, आध्यात्मिक स्वास्थ्य और सामाजिक स्वास्थ्य भी शामिल है।
शारीरिक स्वास्थ्य
शारीरिक स्वास्थ्य शरीर की स्थिति को दर्शाता है जिसमें इसकी संरचना, विकास, कार्यप्रणाली और रखरखाव शामिल होता है। यह एक व्यक्ति का सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए एक सामान्य स्थिति है। यह एक जीव के कार्यात्मक और/या चयापचय क्षमता का एक स्तर भी है। अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के निम्नलिखित कुछ तरीके हैं-
(1) संतुलित आहार की आदतें, मीठी श्वास व गहरी नींद
(2) बड़ी आंत की नियमित गतिविधि व संतुलित शारीरिक गतिविधियां
(3) नाड़ी स्पंदन, रक्तदाब, शरीर का भार व व्यायाम सहनशीलता आदि सब कुछ व्यक्ति के आकार, आयु व लिंग के लिए सामान्य मानकों के अनुसार होना चाहिए।
(4) शरीर के सभी अंग सामान्य आकार के हों तथा उचित रूप से कार्य कर रहे हों।
मानसिक स्वास्थ्य
मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ हमारे भावनात्मक और आध्यात्मिक लचीलेपन से है जो हमें अपने जीवन में दर्द, निराशा और उदासी की स्थितियों में जीवित रहने के लिए सक्षम बनाती है। मानसिक स्वास्थ्य हमारी भावनाओं को व्यक्त करने और जीवन की ढ़ेर सारी माँगों के प्रति अनुकूलन की क्षमता है। इसे अच्छा बनाए रखने के निम्नलिखित कुछ तरीके हैं-
(1) प्रसन्नता, शांति व व्यवहार में प्रफुल्लता
(2) आत्म-संतुष्टि (आत्म-भर्त्सना या आत्म-दया की स्थिति न हो।)
(3) भीतर ही भीतर कोई भावात्मक संघर्ष न हो (सदैव स्वयं से युद्धरत होने का भाव न हो।)
(4) मन की संतुलित अवस्था।
बौद्धिक स्वास्थ्य
यह किसी के भी जीवन को बढ़ाने के लिए कौशल और ज्ञान को विकसित करने के लिए संज्ञानात्मक क्षमता है। हमारी बौद्धिक क्षमता हमारी रचनात्मकता को प्रोत्साहित और हमारे निर्णय लेने की क्षमता में सुधार करने में मदद करता है।
(1) समायोजन करने वाली बुद्धि, आलोचना को स्वीकार कर सके व आसानी से व्यथित न हो।
(2) दूसरों की भावात्मक आवश्यकताओं की समझ, सभी प्रकार के व्यवहारों में शिष्ट रहना व दूसरों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखना, नए विचारों के लिए खुलापन, उच्च भावात्मक बुद्धि।
(3) आत्म-संयम, भय, क्रोध, मोह, जलन, अपराधबोध या चिंता के वश में न हो। लोभ के वश में न हो तथा समस्याओं का सामना करने व उनका बौद्धिक समाधान तलाशने में निपुण हो।
आध्यात्मिक स्वास्थ्य
हमारा अच्छा स्वास्थ्य आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ हुए बिना अधूरा है। जीवन के अर्थ और उद्देश्य की तलाश करना हमें आध्यात्मिक बनाता है। आध्यात्मिक स्वास्थ्य हमारे निजी मान्यताओं और मूल्यों को दर्शाता है। अच्छे आध्यात्मिक स्वास्थ्य को प्राप्त करने का कोई निर्धारित तरीका नहीं है। यह हमारे अस्तित्व की समझ के बारे में अपने अंदर गहराई से देखने का एक तरीका है।
(1) समुचित ज्ञान की प्राप्ति तथा स्वयं को एक आत्मा के रूप में जानने का निरंतर बोध। सुप्रीम डॉक्टर के निरंतर संपर्क में रहना। स्वयं को जानने व अनुभव करने वाली आत्मा सदैव शांत व पवित्र होगी।
(2) अपने शरीर सहित इस भौतिक जगत की किसी भी वस्तु से मोह न रखना। दूसरी आत्माओं के प्रभाव में आए बिना उनसे भाईचारे का नाता रखना। इस प्रकार एक व्यक्ति के कर्म उन्नत होंगे तथा उच्चस्तरीय व विशिष्ट हो पाएंगे।
(3) सुप्रीम डॉक्टर या सर्वोच्च आत्मा से निरंतर बौद्धिक संप्रेषण ताकि सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त कर विशुद्ध कर्म की ओर प्रेषित की जा सके। आत्मा स्वयं को तथा दूसरों को विनीत, अनश्वर तथा दुर्गुणरहित पाएगी। उसे कोई भी सांसारिक बाधा त्रस्त नहीं कर सकती।
सामाजिक स्वास्थ्य
चूँकि हम सामाजिक जीव हैं अतः संतोषजनक रिश्ते का निर्माण करना और उसे बनाए रखना हमें स्वाभाविक रूप से आता है। सामाजिक रूप से सबके द्वारा स्वीकार किया जाना हमारे भावनात्मक खुशहाली के लिए अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
(1) ऐसी मित्रता करें जो संतोषप्रद व दीर्घकालिक हो।
(2) परिवार व समाज से जुड़े संबंधों को हार्दिक व अक्षुण्ण बनाए रखें
(3) अपनी व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार समाज के कल्याण के लिए कार्य करना।
अधिकांश लोग अच्छे स्वास्थ्य के महत्त्व को नहीं समझते हैं और अगर समझते भी हैं तो वे अभी तक इसकी उपेक्षा कर रहे हैं। हम जब भी स्वास्थ्य की बात करते हैं तो हमारा ध्यान शारीरिक स्वास्थ्य तक ही सीमित रहता है। &